Monday 28 October 2013

रंगीला राजेन्द्र

अपनी आदतों और अपने विवादों के बावजूद उनका इतना अधिक जी लेना भी तो करिश्मा ही है

कितने आते  और चले जाते हैं/ कौन किसे याद रखता है/ याद रह जाते हैं उसके कर्म/ अच्छे या बुरे/ और यह  भी समय कि जिल्द में दबकर पीछे और पीछे , इतने कि भुला दिए जाते हैं/ ऐसा होना भी चाहिए/ ऐसा न हो तो नए के लिए मुसीबत हो सकती है/ प्रकृति ऐसा नहीं करने देती , इसलिए जाने वाले का शोक न हो / आने वाला का स्वागत होना चाहिए/
साहित्य में राजेन्द्र यादव का जो कुछ भी योगदान है वो साहित्य की अपनी धरोहर है/ आदमी जब लिख लेता है तो उसकी रचना धरोहर बन जाती  है / यानी लेखक तो लिख कर जा चुका/ अब वो नया ही लिख सकता है / इसलिए राजेन्द्र यादव का अवसान मेरी नज़रों में किसी प्रकार की क्षति नहीं है/ अपनी आदतों और अपने विवादों के बावजूद उनका इतना अधिक जी लेना भी तो करिश्मा ही है/ फिर वे कोइ तुलसीदास नहीं है कि अमर हो जाएँ/ अमरता के लिए आचरण भी जरूरी होते हैं/ आदमी लिखता कुछ और होता कुछ है/ राजेन्द्र यादव ठीक ऐसे ही थे/ मुझे इस आदमी में उसके लेखन के अतिरिक्त कभी कोइ बात ढंग की नहीं लगी/ उसके बारे में जब जब पढ़ा , जब जब सुना  ,बुरा पक्ष ज्यादा रहा जिसे ये आदमी अपना व्यक्तित्व मानता रहा/ ठीक है आदमी को अपनी तरह जीने का हक़ है / अगर समय रहते राजेन्द्र यादव अपनी कारगुजारियों के सन्दर्भ में सच कह देते तो ज्यादा बेहतर होता / क्योंकि जो भी सच था  राजेन्द्र यादव अपने संग ले गए/
इस वक्त उनके जाने से 'हंस' को काफी बड़ा झटका लगा है / या यूं भी कह सकते हैं, अब वो मुक्त हुआ है/ मुक्त इस मायने में कि 'हंस' अब किसी दूसरे को तलाशेगा और बैठायेगा/ वो राजेन्द्र यादव नहीं होगा / सम्भव है 'हंस' के दफ्तर में अब लड़कियों का जोरशोर न रहे/ लडकियां और राजेन्द्र यादव दोनों हमेशा मिस्ट्री  बने रहे/ इस मिस्ट्री युग का अंत हुआ समझो/ यादव जी सचमुच अपने आप में एक रहस्य थे/ रहस्य ही रह कर निकल लिए/
'सारा आकाश' से प्रसिद्धि प्राप्त कर लेने के बाद राजेन्द्र यादव रुके नहीं/ अपनी रंगमिजाजी और मंचीय उपस्थिति से उन्होंने खुद को लगभग हमेशा चर्चा में रखा/ उम्र के तथा अपने लेखन के भी अंतिम पढ़ाव पर आने के बाद भी उनके बारे में मुझे कोइ यह कहते नहीं मिला कि ये आदमी गजब की आदमीयत वाला है/
मैं राजेंद्र  यादव को करीबी समझता रहा / राजेन्द्र यादव मेरे करीब भले न रहे हों/  किन्तु उनकी जीवनी, उनका लेखन और मेरा साहित्य तथा पत्रकारिता में सक्रीय रहना राजेन्द्र यादब नामक शख्स के करीब मुझे रखता रहा/ उनके सन्दर्भ में सुनना- उनका लिखा पढ़ना और उनका मंच से बोलना इत्यादि मेरे लिए उनकी एक छवि का निर्माण करता  रहा था/ फिर कुछ महिलाओं द्वारा उनके बारे में कहते रहना , दबी जुबान का गॉसिप भी तो इस छवि में इजाफा करता रहा/ कितना सच कितना झूठ पता नहीं/ किन्तु आदमी जब भी सार्वजनिक हो जाता है तो उसे खुद को उन संदेहों से बाहर निकालने का प्रयत्न करना चाहिए जो गहराते रहते हैं/ शायद राजेन्द्र यादव को इसमें भी आनंद प्राप्त होता था इसलिए वे संदेहों को ही गढ़ते रहे / अंत तक गढ़ते रहे/ उस वक्त भी जब अंतिम मामला पुलिस तक पहुँच गया/ ख़ैर/ आदमी वाकई रंगीला था/ उसने जैसे जीना चाहा शायद जिया/ इन सबको नज़र अंदाज़  करने के बावजूद कि पारिवारिक जीवन में वो ज्यादातर  अकेले ही दिखा/ पर एक साहित्यकार   के रूप में राजेन्द्र यादव ने अच्छी पैठ जमा कर रखी जो अंत तक कायम रही/ यह सच है कि  उनके जाने और उनके पीछे छोड़ जाने वाले कई संस्मरणों को लोग अपने अपने तरीके से याद रखेंगे / वे एक शख्सियत तो थे ही / और यही वजह भी है कि उनके बारे में लिखा जाता रहा/ लिखा जा रहा है/
आप यह बिलकुल कह सकते हैं के राजेन्द्र यादव रंगीले रहे / रंगीले होना यानी रंग से सराबोर होना होता है/ राजेन्द्र यादव ने साहित्यिक जीवन में कई कई रंग बिखेरे हैं/ अब वो इस दुनिया में नहीं हैं किन्तु उनके द्वारा बिखेरे गए रंग मौजूद हैं, मौजूद रहेंगे /