Saturday 26 October 2013

कैसे ज़िंदा रह लेते हैं ये कांग्रेसी ?

भय है , यदि मत्था न टेका तो जड़ से उखाड़ फेंके जायेंगे 

ताज्जुब है, कांग्रेस में एक भी ऐसा नेता नहीं है जो  राहुल गांधी की बकवास को रोकने की बहादुरी दिखा सके/  इन निर्वीर्य नेताओं पर लानत है/ इन नेताओं में से अगर एक भी नेता अनाप शनाप बकता तो उसे कबका कांग्रेस से बाहर निकाल दिया जाता / वाह  री स्वामी भक्ति/ हद हो गयी है, अपने स्वाभिमान, अपने जमीर सबकुछ को तो न्योच्छावर कर दिया गया है और खुद को बुद्धिमान, अक्लमंद बताये फिरते हैं/ कैसे ज़िंदा रह लेते हैं ये कांग्रेसी ?
नरेन्द्र मोदी का तूफ़ान है/ इस तूफ़ान को रोकने ही राहुल गांधी ने खुद कमान संभाली/ यह अच्छा भी था/ मगर कमान संभालने का मतलब जबान संभालना भी होता है/ और जबान तब ही संभल सकती है जब दिमाग में जानकारियाँ हो , देश हित हो , सामान्य ज्ञान हो/ इसके अलावा जो सलाहकार हैं वे कम से कम चाटुकार न हो/ पर इस गांधी परिवार को खुशामदी लोगों के अलावा दूसरा कुछ पसंद भी तो नहीं है/ और ये कांग्रेसी बखूबी जानते हैं कि यदि मत्था न टेका तो जड़ से उखाड़ फेंके जायेंगे / और इनकी रोजी रोटी भी तो यही है / लिहाजा जो आज्ञा हुजूर की भांति सबके सब खड़े दीखते हैं/
मुझे अब तक लगता था कि हो न हो ऐन  चुनाव के मौके पर कांग्रेस हमेशा की तरह बाजी मार ले जायेगी / मगर अब नहीं लगता/ अब सचमुच नहीं लगता / अपने कुछ मित्रों से, जो पक्के कांग्रेसी रहे, जब बातें होती है तो उनका कहना है राईट टू  रिजेक्ट   ज्यादा बेहतर है / वे अगर भाजपा को विकल्प नहीं मानते तो कांग्रेस को ही वोट देंगे ऐसा नहीं है/ अब राईट टू रिजेक्ट का आप्शन ऐसे लोगों के लिए है/
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस की यह गत इस वजह से बनी कि बीजेपी को लोग पसंद करने लगे/ उसके अपने जो वोट थे, वे तो हैं ही , मगर राहुल-सोनिया के आकर्षक विहीन रवैये के कारण वे सोचने पर मजबूर हो गए , दूसरी ओर   कमजोर सत्ता संचालन और महंगाई से कुचल चुकने की वजह ने लोगों को  लगभग तोड़ कर रख दिया है, इस पर भी सत्ता संभाले किसी भी नेता के चहरे  तड़प रही जनता पर उदास होते नहीं दीखते/ उन्हें जब भी देखा जाता है वे सोनिया और राहुल के गुणगान में लगे दीखते हैं/ राहुल गलत-सलत बोल रहे हैं तो ये नेता उनका बचाव करते कुतर्क कर रहे हैं/ क्या  जनता इतनी बेवकूफ हैं कि इनके बेवकूफ होने को भी सहे, और गांधी परिवार की ड्यूटी बजाते इन नेताओं पर गर्व करे /  इन नेताओं की रोजी रोटी या घर परिवार गांधी भक्ति से चल सकता है किन्तु आम जनता को तो सड़क पर निकलना  होता है/ उसे रोज अपना पेट काट कर बच्चे पालना होता है/ क्या यह इस विकट  दौर में आन पडी मजबूरी नहीं है, जो विकल्प ढूँढने  की ओर  स्वतः ही मोड़ती है?

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