Wednesday 23 October 2013

डे कभी ख़त्म होता है भला

मशहूर गायक मन्ना डे का बैंगलोर के अस्पताल में निधन हो गया है। मन्ना डे 94 साल के थे और काफी समय से बीमार चल रहे थे।  मगर 'डे' कभी ख़त्म नहीं होता /
दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित मन्ना डे के नाम से लोकप्रिय प्रबोधचंद डे का जन्म एक मई 1919 को कोलकाता में हुआ था। मन्ना डे ने अपनी गायिकी के सफर में कई भारतीय भाषाओं में लगभग 3500 से अधिक गाने गाए।
आवाज जिसे दी उसने कामयाबी छुई 
मन्ना डे के आवाज का इस्तेमाल जहां-जहां हुआ कामयाबी की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ। मन्ना डे को संगीत के क्षेत्र में बेहतरीन योगदान के लिए पद्म भूषण और पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा गया। संगीत में उनकी रूचि अपने चाचा केसी डे की वजह से पैदा हुई।
वकील नहीं बने 
हालांकि उनके पिता चाहते थे कि वो बड़े होकर वकील बने। लेकिन मन्ना डे ने संगीत को ही चुना। कलकत्ता के स्कॉटिश कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ मन्ना डे ने केसी डे से शास्त्रीय संगीत की बारीकियां सीखीं। कॉलेज में संगीत प्रतियोगिता के दौरान मन्ना डे ने लगातार तीन साल तक ये प्रतियोगिती जीती। आखिर में आयोजकों को ने उन्हें चांदी का तानपुरा देकर कहा कि वो आगे से इसमें हिस्सा नहीं लें।
संघर्ष ही संघर्ष 
23 साल की उम्र में मन्ना डे अपने चाचा के साथ मुंबई आए और उनके सहायक बन गए। उस्ताद अब्दुल रहमान खान और उस्ताद अमन अली खान से उन्होंने शास्त्रीय संगीत सीखा। इसके बाद वो सचिन देव बर्मन के सहायक बन गए। इसके बाद वो कई संगीतकारों के सहायक रहे और उन्हें प्रतिभाशाली होने के बावजूद जमकर संघर्ष करना पड़ा। 1943 में आई फिल्म ‘तमन्ना’ के जरिए उन्होंने हिन्दी फिल्मों में अपना सफर शुरू किया और 1943 में बनी ‘रामराज्य’ से वे प्लैबैक सिंगर बन गए। सचिन दा ने ही मन्ना डे को सलाह दी कि वे गायक के रूप में आगे बढ़ें और मन्ना डे ने सलाह मान ली।
भगवान् भरोसे 
मन्ना डे ने कुछ धार्मिक फिल्मों में गाने क्या गाएं उन पर धार्मिक गीतों के गायक का ठप्पा लगा दिया गया। ‘प्रभु का घर’, ‘श्रवण कुमार’, ‘जय हनुमान’, ‘राम विवाह’ जैसी कई फिल्मों में उन्होंने गीत गाए। इसके अलावा बी-सी ग्रेड फिल्मों में भी वो अपनी आवाज देते रहें। भजन के अलावा कव्वाली और मुश्किल गीतों के लिए मन्ना डे को याद किया जाता था। इसके अलावा मन्ना डे से उन गीतों को गंवाया जाता था, जिन्हें कोई गायक गाने को तैयार नहीं होता था। धार्मिक फिल्मों के गायक की इमेज तोड़ने में मन्ना डे को लगभग सात सात लगे।
'आवारा' ने आदमी बनाया 
फिल्म ‘आवारा’ में मन्ना डे के गीत ‘तेरे बिना ये चांदनी’ बेहद लोकप्रिय हुआ और इसके बाद उन्हें बड़े बैनर की फिल्मों में मौके मिलने लगे। ‘प्यार हुआ इकरार हुआ..’ (श्री 420), ‘ये रात भीगी-भीगी..’ (चोरी-चोरी), ‘जहां मैं चली आती हूं..’ (चोरी-चोरी), ‘मुड-मुड़ के ना देख..’ (श्री 420) जैसी कई सफल गीतों में उन्होंने अपनी आवाज दी। मन्ना डे जो गाना मिलता उसे गा देते। ये उनकी प्रतिभा का कमाल है कि उन गीतों को भी लोकप्रियता मिली। उनका सबसे मशहूर गाना ‘कस्में वादे प्यार वफा..’ था।

पालटिक्स के भी रहे शिकार 
भारतीय फिल्म संगीत में खेमेबाजी उस समय जोरों से थी। सरल स्वभाव वाले मन्ना डे किसी कैम्प का हिस्सा नहीं थे। इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। उस समय रफी, किशोर, मुकेश, हेमंत कुमार जैसे गायक छाए हुए थे और हर गायक की किसी न किसी संगीतकार से अच्छी ट्यूनिंग थी। साथ ही राज कपूर, देव आनंद, दिलीप कुमार जैसे स्टार कलाकार मुकेश, किशोर कुमार और रफी जैसे गायकों से गंवाना चाहते थे, इसलिए भी मन्ना डे को मौके नहीं मिल पाते थे। मन्ना डे की प्रतिभा के सभी कायल थे। लेकिन साइड हीरो, कॉमेडियन, भिखारी, साधु पर कोई गीत फिल्माना हो तो मन्ना डे को याद किया जाता था। कहा तो ये भी जाता था कि मन्ना डे से दूसरे गायक डरे थे इसलिए वे नहीं चाहते थे कि मन्ना डे को ज्यादा अवसर मिले।

No comments:

Post a Comment