Wednesday 27 November 2013

'आप' सिरदर्द , बीजेपी की बल्ले बल्ले , करहाती कांग्रेस

तीन राज्यों में चुनाव निपट गए/ फैसला आना है/ दो राज्य बचे हैं और दोनों राज्य फिलहाल कांग्रेस के कब्जे वाले राज्य हैं/ राजस्थान और दिल्ली/ राजस्थान में केसरिया लहर है और दिल्ली में 'आप' वाले भारतीय जनता पार्टी के लिए मुसीबत बने हुए दीखते हैं/ हालांकि एक सर्वे ने बीजेपी को बहुमत दिलाया है तो कांग्रेस को मुंह की खिलाई है और 'आप' को १० सीटें तोहफे में दी है/ किन्तु 'आप' के अंदरूनी सर्वे के मुताबिक़ बीजेपी को दस सीटे मिलेगी और खुद दिल्ली की सत्ता पर काबिज होगी/ माहौल देखकर कहें तो 'आप' का यह ओवर कांफिडेंस है और वे मतदाताओं को अपनी ओर खींचने का प्रयत्न करने में लगे हुए हैं/ बीजेपी को हानि होगी यह तय है किन्तु हर्षवर्धन को तख्तोताज पर बैठे पाया जा सकता है/ शीला दीक्षित और अरविन्द केजरीवाल सामान सीटों के आसपास खड़े दिख सकते हैं/ यह 'खबर गल्ली' का अपना आकलन है/ 'खबर गल्ली' ने मतदान के प्रतिशत का भी एक आकलन निकाला है / दिल्ली में मतदान ८० प्रतिशत होने की सम्भावनाएं है और बताया जाता है कि अगर मतदान ज्यादा हुआ तो इसका फ़ायदा भी बीजेपी और 'आप' को ज्यादा होगा/ कांग्रेस के लिए मुसीबत ही ठहरी / यानी 'आप' सिरदर्द होगी /
उधर राजस्थान  की स्थिति सीधे सीधे केसरिया रंग में रंगी दिख रही है/ वैसे राजस्थान अपनी परम्परा को निभाने में उस्ताद है/ एक बार कांग्रेस , दूसरी बार बीजेपी / उलट-पलट कर सत्ता को परखती राजस्थानी जनता इस बार बीजेपी के मूड में है / हालांकि वसुंधरा राजे की अपनी छवि के चलते यह माहौल नहीं होगा बल्कि नरेंद्र मोदी के लालच में राजस्थान बीजेपी के पक्ष में अधिक झुकी नज़र आती है/ अशोक गेहलोत खुद अपनी सीट बचा लें तो उनके लिए बड़ी  बात होगी, ऐसा माना जा रहा है/ यानी राजस्थान इस बार बड़े परविर्तन की ओर संकेत देता है/ यहाँ वैसे भी वोटों का प्रतिशत अच्छा पड़ता है , और इस बार भी ७० से ८५ प्रतिशत मतदान होने की सम्भावनाएं हैं/
आप इन पाँचों राज्यों के परिणाम का एक अंदाज़ लगाएं तो मिजोरम को छोड़ कर चारों राज्य बीजेपी के पक्ष में जाते दीखते हैं/ यह आनेवाले लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस को एक चुनौती भी होंगे/ दरअसल कांग्रेस ने खुद अपनी छवि खराब की है/ बीजेपी की जीत कोइ बीजेपी से प्रेम के तहत नहीं होगी बल्कि कांग्रेस के पास अपना कोइ बेहतर या  दबंग लीडर के न होने से होगी/ वैसे भी कांग्रेस का पूरा कार्यकाल जनता के हित में कम और अहित में ज्यादा नज़र आया/ आप अंतर्राष्ट्रीय मायाजाल को छोड़ दीजिये , देश का एक आम नागरिक सिर्फ रोटी-कपड़ा-मकान ही देखता है/ और जब उसे ये नहीं मिलता तो उसे सरकार में खामियां दिखती हैं/ कांग्रेस आम जनता को अपने विशवास में लेने में कामयाब नहीं हुई है और यही वजह है कि उसे पटखनी खानी होगी/
बहरहाल, १ दिसम्बर और ४ दिसम्बर को मतदान हैं / इसके बाद फैसले की घड़ी होगी / तब तक सिर्फ आकलन हैं, सर्वे हैं और सम्भावनाएं हैं/ फैसले क्या निकलते हैं यह तो जनता जनार्दन के 'मत' ही दिखलायेंगे /  

Monday 18 November 2013

सचिन लायक नहीं थे इस 'भारत रत्न' के / क्यों ?

भावनाओं  के सागर में हाथ धोने का काम किया है कांग्रेस ने और सचिन के ऊपर इतनी बड़ी जिम्मेदारी थोप दी है जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना भी पड़  सकता है/ सचिन इस वक्त भारत रत्न के हकदार नहीं थे/ हाँ, आज से २० साल बाद उन्हें यह सम्मान दिया जाता तो उचित था/ वे महान तो हैं ही मगर  अभी तो उनकी असली जिंदगी शुरू होनी है जिसमें तय होगा कि वे कितने बड़े महान खिलाड़ी रहे/ सचिन खुद इस षड्यंत्र को भांप नहीं पा रहे हैं, वे खुद अंधे हो चले हैं अपने सम्मान और पुरस्कार की आंधी में/ वे समझ ही नहीं पा रहे हैं कि उनको किस तरह से इस्तमाल कर लिया गया है/  और  किया जाता है/
पहली बात - भारत रत्न माने क्या ? ये एक तरह से लाइफ टाइम अचीवमेंट जैसा है/ यह अपने आप में एक पूरा जीवन है / यह पुरस्कार अन्य पुरस्कार जैसा नहीं , इसमें भारत की शान है , भारत का गर्व है/ महज २४ साल का करियर/ ४० साल की उम्र/ आने वाले वक्त में इस सम्मान की लाज बचाये रखने में सचिन को कितनी मुश्किलों का सामना करना होगा , ये वे नहीं जानते/ और इससे उन्हें कुछ भी लेना देना नहीं जिन्होंने ये सम्मान सचिन को दिलवा दिया/
दूसरी बात - सचिन किसी भी रूप में ध्यानचंद से पूर्व इस सम्मान के  हकदार नहीं थे/ अब इसके बाद अगर ध्यानचंद को भारत रत्न दिया जाता है तो यह ध्यानचंद का अपमान ही कहा जाएगा , जिसने गुलाम भारत के वक्त अपने देश को विश्व में आगे रखा/ जिसने अपने देश के लिए फटेहाल रहना स्वीकार किया न कि हिटलर की सेना में ऐशो आराम से/ जिसने अपने देश की हॉकी को ओलम्पिक स्वर्ण से एक बार नहीं तीन तीन बार संवारा / जिसने अपना सबकुछ न्योच्छावर  करते हुए देश को जीवन सौंप दिया / जिसने  दिल्ली के एम्स   अस्पताल  के सामान्य वार्ड में  दम तोड़ा /
तीसरी बात- क्रिकेट कार्पोरेट जगत का खेल है/ ये जो बोर्ड है यह भी भारतीय सरकार के अधीन नहीं है/ यह एक निजी संस्था है/ ये सिर्फ एक क्लब भर है / अमीर क्लब/ क्लब के हित में खेलते हुए खिलाड़ी पैसा कमाता है / सचिन ने भी खूब कमाया / आप उन्हें अरब पति मान सकते हैं/ हालांकि इस सम्मान में उनकी अमीरी से कोइ लेना देना नहीं है , बल्कि मैं दर्शाना  यह चाह रहा हूँ कि आपने भारत के लिए क्या किया ? सही मायने में देखा जाए तो भारत के लिए सचिन ने कभी नहीं खेला सिवा बी सी सी आई नामक संगठन के/
चौथी बात- आप सचिन के प्रेमी है, प्रशंसक हैं, इसलिए बात जल्दी हजम नहीं होगी / तर्क में आप कहते हैं सचिन बगैर बोले कितना कुछ गरीब जनता-बच्चों के लिए कर रहे हैं/ ठीक है।  बहुत अच्छी बात है/ किन्तु यह बात भारत रत्न के मापदंड में पूरी तरह फिट नहीं बैठती / उसका एक प्वाइंट भर हो सकता है/ क्योंकि भारत में ऐसी लम्बी सूची है जिन्होंने अपना पूरा जीवन बगैर किसी प्रचार के जनता के हित में लगा दिया है , लगा रखा है/
पांचवी बात- क्रिकेट मैच फिक्सिंग को लेकर कई बार कटघरे में खड़ा हुआ है/ हाँ, सचिन जब टीम में थे तब भी उनकी टीम के खिलाड़ियों पर मैच फिक्सिंग की गाज गिरी/ खिलाड़ी प्रतिबंधित हुए/ क्या सचिन को बिलकुल भी पता नहीं चला कि ये सब माज़रा है क्या? ड्रेसिंग रूम में हवा तक नहीं लगी होगी ? सचिन ने अपना मुंह हमेशा बंद रखा है/ चलिए मान लेते हैं सचिन के मुंह पर बोर्ड का ताला  लटका हो, किन्तु अब तो उन्हें इस तरह के मामलात  की  पोल खोलनी चाहिए/ आप भारत रत्न हैं, आपकी नाक के नीचे क्रिकेट मैला  होता रहा और आप बस दर्शकों की तरह देखते रहे, ऐसा कैसे सम्भव है ? अगर सचिन आने वाले कल में कभी इस तरह के किसी भी विवाद में पड़ जाते  हैं तो यह हमारे भारत रत्न का अपमान नहीं होगा ? अभी तो वे महज ४० साल के हैं और ताज़ा ताज़ा रिटायर हुए हैं/
छठी बात - सचिन खुद ये जानते हैं कि उन्हें भारत रत्न का सम्मान देकर सरकार ने खासकर कांग्रेस ने फंसा दिया है/ अगर वाकई वे बड़े महान खिलाड़ी होते और खेलों के प्रति उनके मन में सम्मान होता तो वे बेहिचक कह सकते थे कि ये सम्मान पहले ध्यानचंद को दिया जाना चाहिए/ अभी मैं खुद को इस लायक नहीं मानता/ जबकि ऐसा नहीं हुआ, क्यों? क्योंकि क्रिकेट के रिकार्ड्स की तरह ही उनके मन में भारत रत्न का लालच था / आप कैसे कह सकते हैं कि जितने  शतक आपने बनाये वो बस अपनी टीम को जितवाने के लिए बनें? इसमें आपकी कोइ लालची भावना नहीं थी ? कोइ भी खिलाड़ी हो, पहले खुद के लिए खेलता है/ बाद में सारे क्रियाकर्म आते हैं/
सातवीं बात- अभी भी सचिन प्रेम में अंधे बने लोगों को सच्ची बात गले उतारने में कठिनाई आएंगी , जो भारत रत्न की अहमीयत नहीं जानते/ उनसे मेरी विनती है कि वे इस आलेख को न पढ़ें या पढ़ भी लें तो मेरी आलोचना शुरू कर दें/ किन्तु देश के इस महान पुरस्कार की जो दशा आज मुझे दिखाई  दे रही है वह मुझे पीड़ा पहुंचा रही है/ क्योंकि इसमें सिर्फ और सिर्फ कांग्रेसी  कूटनीति की बदबू है/ सचिन को कैसे पच जा रहा है यह सब, वे जानें / कितना पचा लेने की क्षमता उनमें है ये उनकी अपनी ताकत/ महानता इसे नहीं कहते सचिन/ जबकि सचिन महान है/ यह कितना बड़ा विरोधाभास दिखने लगा है/ 

Friday 15 November 2013

''सचिन ने कभी क्रिकेट खेला ही नहीं''

सचिन ने क्रिकेट को अलविदा कह दिया / २४ साल के अपने करियर में सचिन ने कभी क्रिकेट नहीं खेला/ आपको आश्चर्य होगा यह जान कर मगर सच यही है/ अगर सचिन क्रिकेट खेलते तो आज जैसा उनके लिए माहौल है वैसा नहीं बनता/ दर असल क्रिकेट उन्हें खेलता रहा/ क्रीज पर क्रिकेट रहा/ आंकड़ों में क्रिकेट रहा/ किताबों से बाहर क्रिकेट आया/ अपनी परिभाषा को दृश्यमान बनाकर क्रिकेट ने दर्शकों का मन मोहा/ हर जगह क्रिकेट ही रहा जो प्रदर्शन करता रहा/ जो सचिन को खेलता रहा / दुनिया भर के समाचार पत्र-पत्रिकाएं सचिन के नाम से रंग जाएँ मगर सचिन जब भी मैदान पर उतरे , क्रिकेट उनको एन्जॉय करता रहा/ क्रिकेट के अपने इतिहास में सचिन ही एकमात्र खिलाड़ी पैदा हुआ जिसे खेल कर क्रिकेट ने खुद को महान  बना लिया / उसे बाज़ार भी तो सचिन ने बनाया/ उसे बुखार का रूप भी तो सचिन ने दिया/ उसे हर फिल्ड में ऊपर कर दिया/ क्रिकेट सचिन के हाथों दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता रहा/आप देखेंगे तो यही पाएंगे कि क्रिकेट के खेल को , उसकी तकनीक को जिस तरह से इजाद किया गया था , ठीक वैसा ही वो सचिन से चिपक कर लाइव दिखता रहा/ आप क्रिकेट की कोइ भी किताब खोल लें और उसके हर एंगल को बारीकी से जांचे फिर क्रीज पर बल्लेबाजी करते हुए सचिन को देख लें तो दोनों में ज़रा भी फर्क नजर नहीं आयेगा/ जैसा किताब में लिखा , वैसा ही सचिन के माध्यम से क्रिकेट मैदान पर बहा / क्रिकेट में जो संगीत बसा हुआ है , उसे ठीक उसी अंदाज में सचिन ने स्वर दिया / या सचिन क्रिकेट का वाद्य यंत्र बनकर प्रस्तुत हुआ/ दुनिया भर के मैदानों पर सचिन स्वर का गूंजना , और क्रिकेट रिकार्ड बुक में नए नए  रागों के साथ अंकित होना यही दर्शाता है कि सचिन को क्रिकेट खेलता रहा/ जैसे संगीत में तानसेन /

''बहुत से कहते हैं सचिन 
तो बस क्रिकेट के लिए पैदा हुआ / 
मैं ऐसा नहीं मानता , इसके उलट मेरा 
कहना  है क्रिकेट सचिन के लिए इजाद हुआ/'' 

बहुत से कहते हैं सचिन तो बस क्रिकेट के लिए पैदा हुआ / मैं ऐसा नहीं मानता , इसके उलट मेरा कहना है क्रिकेट सचिन के लिए इजाद हुआ/ सचिन से पहले तक ये नित्य खिलाड़ियों के सहारे अपने आपको तराशता रहा और जब सचिन क्रीज पर उतरा क्रिकेट ने उसे अपने आप में समेट  लिया/ २४ साल के इस सफ़र में क्रिकेट सचिन को लेकर फलता फूलता रहा/ अपनी अदा, अपना रोमांच , अपना जादू बिखेरता रहा/ सचिन का हर अंग क्रिकेट से लीपापुता रहा/ और यही वजह है कि सचिन के साथ दुनिया के जितने खिलाड़ियों ने क्रिकेट खेला वे सारे के सारे अमर हो गए/ या उनके जहन  में सचिन के साथ के  संस्मरण हमेशा हमेशा ले लिए अमर हो गए / सिर्फ खिलाड़ी ही क्यों? उन तमाम लोगों के लिए भी जो अपने अपने तरीके से सचिन से मिले हों/ सचिन से हाथ मिलाने का मतलब है आपने क्रिकेट से हाथ मिलाया है/ मुझे तो हमेशा क्रिकेट ही खिलखिलाता दिखा है / अन्यथा कोइ वजह नहीं होती कि कोइ इंसान इमोशन में बहक न जाए/ क्रिकेट सचिन के अंदर रग-रग में समाया है तो वो इंसान ही कब रहा / शायद इसीलिये क्रिकेट का भगवान बना दिया गया सचिन को/
मैं सचिन का समर्थक कभी नहीं रहा/ खेल  का प्रशंसक रहा और क्रिकेट के लिए ही सचिन  को पूछता रहा/ आज भी क्रिकेट ही सचिन का सबकुछ है/ सम्भव है अब क्रिकेट आराम करेगा/ सचिन को सचिन की तरह जीने देगा/ और अब हो सकता है कि सचिन क्रिकेट खेले/ क्योंकि सचिन क्रिकेट को लेकर अपना भविष्य अब बनाएंगे / मैदान से बाहर/ 

Wednesday 13 November 2013

पैसा उगाने की घटिया सोच को तवज्जो

नए अखबारों के साथ समस्या यह है कि वो एक अलग ही खुमारी में रहते हैं/ लीक से हट कर , कुछ अलग कर देने वाली सोच को लेकर वे मैदान में उतरते हैं और उसी पटरी पर चलने लगते हैं , जो परम्परागत है/ कंटेन की बात तो खूब करते हैं मगर उसे उसी रूप में पेश नहीं कर पाते और भटक जाते हैं/ इसका सीधा सा कारण है वे 'बेहतरी' को  नजर अंदाज़ करते हैं, अनुभव -प्रतिभा को किनारे रखते हैं  और अपने अहम् में सफ़र करते हैं/ इससे हालांकि 'बेहतर' को कोइ हानि नहीं होती मगर उनके सफ़र में व्यवधान पैदा होकर वे अकाल मौत मारे जाते हैं/ 

पिछले दिनों अखबारों की गिरती दशा पर चर्चा आयोजित की थी , कुछ प्रबुद्धजनों ने अपने विचार रखे , कुछ प्रबुद्ध जन अभी भी इस पर चर्चा कर मंथन कर रहे हैं/ यह अच्छी बात है/ ऐसा  होना भी चाहिए / हमारा प्रयास है कि अखबार को उसकी दिशा मिले / इस क्रम में  दैनिक जलतेदीप , जोधपुर के पूर्व समाचार संपादक विजय कुमार मेहता ने अपने विचार पेश किये, आज उनके विचारों से चर्चा को आगे बढ़ाते हैं/

''गुणी और ज्ञान से भरे शब्दों के माली उसे चाहिए भी तो नहीं''

''कोई बहुत पुरानी बात नहीं है ..आज से सोलह बरस पहले तक जिला स्तरीय या राज्य स्तरीय समाचार पत्र जो सामग्री परस  रहे थे, उसमे रचनात्मक लेखन की झलक दीख जाती थी, तब एक अख़बार ने पाठकों के उस तबके की नस पकड़ी जिस तबके ने टीवी पर आने वाले फूहड़ कार्यक्रमों, स्तरहीन शब्दज्ञान रहित सामग्री को वाह वाही देनी प्रारंभ की थी... उसी तबके ने 'हमको क्या पसंद है' की तर्ज पर अख़बारों की 'उस तरह की सामग्री' को तरजीह देनी शुरू कर दी.....एक बड़े अखबार की नासमझ नयी पीढ़ी ने उस नवागंतुक अखबार की फ्री में इतनी पब्लिसिटी कर दी जो तब लाखों रुपये खर्च करने से नहीं हो सकती थी ...... ..फलत: आज वह अखबार जिले और राज्य से बाहर निकल कर राष्ट्रीय स्तर पर 'प्रतिष्ठित' हो चुका है.....जिले और राज्यों के तमाम छोटे अखबार उस बड़े समूह ने निगल लिए हैं.... ऐसे में उन बर्बादी की कगार पर पहुँच चुके छोटे अखबारों ने भी रचनात्मक लेखन की तरफदारी छोड़ जैसे तैसे पैसा उगाने की घटिया सोच को तवज्जो दे दी... आज 1000 या 2000 प्रतियाँ छापने वाला अखबार जो सरकारी खातों अनुसार डेढ़ से दो लाख प्रतियाँ छाप रहा है ... सरकारी  विज्ञापनों और बड़ी कोमर्शियल रेट्स पर छपने वाले विज्ञापनों की चाह में इतना भूखा हो गया है की उसकी आपूर्ति ............जैसे भरपेट मिल जाने के बाद भी वो अतृप्त हो ..उसे और धन चाहिए ..बस धन ..... तब ...
ऐसे वक्त में गुणी और ज्ञान से भरे शब्दों के माली उसे चाहिए भी तो नहीं ....उसे केवल पैसे से सरोकार हो.... नाम में क्या रखा है ....उन ज्ञानवर्धक पत्रिकाओं का अस्तित्व भले फूहड़ शब्दों, बेतरतीब शैली और गोशिप से भरे पत्र पत्रिकाओं ने लील लिया हो ... पर इनका पेट कमर से नहीं लगेगा ... आज की पीढ़ी का पत्रकार शब्द का मर्म समझे बिना अपने को उसकी तह में घुसा समझ व्याख्या में यकीन रखता है .. बिन सोच इस तरह से मंतव्य थोप देना .और ऐसी ही युवा पीढ़ी भी है जो 'इन्स्टेंट' के मजे में मूल का स्वाद चख ही नहीं पाती ....आज के हिंदी अखबारों के नहीं टिक पाने की बड़ी वजह है ...साहित्यिक सामग्री से ज्ञान चूसने से पीछा छुड़ाती नयी पीढ़ी ... कॉर्पोरेट श्हाएँ बाएं की गणित लगता है थोड़े समय बाद 'रचनात्मक' शब्द पर ही प्रश्न चिन्ह लगा देगी ......अंग्रेजी स्कूल की पक्षधर नयी पीढ़ी को हिंदी के बहुतेरे सरल से शब्दों का मतलब समझने की गरज तक नहीं है...ऐसे में हिंदी अखबारों का उत्थान हो तो कैसे 

Saturday 9 November 2013

मुम्बई के गड्ढे या गड्ढों में मुम्बई ?

गड्ढों में चलता करोड़ों का खेल  

मुम्बई देश  की आर्थिक राजधानी है/ मुम्बई माया नगरी है/ मुम्बई बेमिसाल है/ यह इससे भी अधिक अच्छी मुम्बई से बाहर बैठे लोगों के लिए हो सकती है/ किन्तु जो भी एक बार मुम्बई  की सड़कों से गुजरता है उसे यकीन नहीं होता कि वह मुम्बई में है या ठेठ गाव की किसी सड़क पर जो शहरी दुनिया से एकदम अलग है / यह सच्चाई मुम्बई के सुनहरे दृश्यों पर कालिख है/ सारा मज़ा बिगड़ जाता है जब आप इसके उपनगरों से होते हुए मुम्बई दर्शन के लिए निकलते हैं/ सड़कें माशा अल्लाह उबड़-खाबड़ हैं/ सुधारी जाती है / उखड जाती है/ और आपको उखड़ी सडकों पर ही चलना होता है/ मज़ा यह कि अभी बनी सड़क , अभी ही खोद  दी जाती है / कारण पाइप लाइन डालनी है, केबल डालना है इत्यादि / कारण मौजूद है/ किन्तु सड़कें मौजूद नहीं रहती/
आम जनता के दर्द भी गली मोहल्ले की चर्चा के दौरान रीलीज होते रहते हैं/ कुछ आंदोलन भी होते हैं/ अखबारों  में बड़े बड़े पेज सजते हैं/ राजनीतिक पार्टियां एकदूसरे पर सडकों के माध्यम से कीचड उछालती है / मगर सड़क है कि अपने गड्ढों से अलंकृत ही रहती है/ दुर्घटनाएं सामान्य है / आप  सकुशल चल सकें यह असामान्य और दुर्लभ कार्य है/ फिर भी मुम्बई है और मुम्बई की शान है/
सड़कों की कायापलट     के  लिए टेंडर    निकाले  जाते  हैं/ सड़कों पर रोलर  भी चलता  है , डाम्बर  भी डलता  है/ पत्थर - गिट्टी  से मजबूती  भी दी जाती है/  मगर क्या हो जाता है कि करोड़ों की लागत गड्ढों में चली जाती है और मुम्बईकरों को गड्ढों में सड़क ढूंढनी पड़  जाती है/ मामला अदालत तक भी जाता है कोर्ट फटकार भी लगाती है , मगर परिणिति वही ढाक  के तीन पात वाली / आखिर किया क्या जाए? इसका कोइ समाधान न तो मुम्बई महा नगर पालिका के पास है और न ही टेंडर हड़प ले जाते ठेकेदारों के पास/ दोनों के पास समाधान का न होना ही उनके अपने समाधान के लिए आवश्यक भी है/ आप ही देख-जान लें कि कोइ दस वर्षों में १२ हजार करोड़ रुपये सड़कों  में ठोंक   दिए  गए मगर एक एक रुपयों की हालत यह हो गयी कि उसके चिथड़े भी ढूढ़ते नहीं दीखते/ आम नागरिक आखिर किसकी तरफ उंगली उठाएगा ? वह या तो नगर सेवक पर निशाना साधेगा , नहीं तो अधिकारियों  पर / या फिर उसके सामने ठेकेदार होंगे / इन पर तीर इसलिए भी चलाये जाते हैं क्योंकि यहीं है जो मुम्बई की सडकों के नाम पर करोड़ों का व्यय  करते हैं/ यह व्यय जाता किधर है? मुद्दा यही है / तमाम राजनीतिक पार्टियां, सत्ताधीन नेताओं को कटघरे में खड़ा करती हैं/ किन्तु कोइ भी सडकों की खस्ता हालत के सन्दर्भ में सड़क पर उतर कर सड़कें नहीं बनवाता / वही गिने चुने ठेकेदारों के पास काम जाता है/ वही ठेकेदार वैसा ही काम करवाते हैं/ मगर पैसा हर समय से अधिक ही लेते हैं/ आपकों बता दें कि कोइ बारह  साल पहले यानी २००० में सड़कों के टेंडर महज एक से पांच करोड़ के बीच में होते थे / सड़कें भी होती थीं/ यानी कम गड्ढों वाली सड़कें/ प्रति सड़क के हिसाब से ठेका होता था/ बाद में शायद हुआ यह कि सड़कों के नीचे स्वर्ण छुपा दिखा , तभी न एक से पांच सड़कों के लिए टेंडर निकाले जाने लगे और यह १० से १५ करोड़ में या फिर १५ से २० करोड़ तक जा पहुंचा/ बदलाव हुए/ 2012   आते आते तो मामला १०००  करोड़ तक पहुँच गया / और सड़कों का क्या हुआ? पहले दो चार गड्ढे हुआ करते थे / धीरे धीरे वो पूरी तरह गड्ढों में तब्दील हो गयी/ यानी बारिश का मौसम आया ही था कि सड़कें पानी में बहने  लगी/ नामी गिरामी कंपनियों के ठेके में बनीं सड़कें अपनी बदकिस्मती पर रोने लगी, नागरिक सड़कों के आंसू अपनी आँखों में समेटते हुए इन गड्ढों में सफ़र करने पर मजबूर हो गए/
अब फिर करोड़ों का टेंडर निकला जाना है/ पुराने काम यथावत है/ आरोप-प्रत्यारोप जारी   है/ यानी सबकुछ होता है मगर सड़कें नहीं बनती / और अगर बनती भी हैं तो बहुत जल्द मरने के लिए बनती  हैं/ इन कम उम्र सड़कों को दीर्घायु बनाये जाने जैसा कुछ भी नजर नहीं आता/ या तो वाकई नज़र नहीं आता या फिर नागरिकों की आँखों में मोतियाबिंद हो गया लगता है/ क्योंकि न नेता, न बीएमसी, न अधिकारी और न ठेकेदार अपना दोष मानने को तैयार है/ दोषी हैं तो नागरिक है / वे ही भुगतें/  

Friday 8 November 2013

सट्टे के बट्टे पर बीजेपी ठप्पे


चुनाव हो तो सट्टेबाजों की चांदी रहती है

चित्र गूगल से साभार 
देश में चुनावी माहौल है/ फिलवक्त विधान सभा चुनावों का तंदूर  सुलग रहा  है और इसमें पार्टियां अपने अपने तरीके से  रोटियां सेंकने में जुटी है/ किसकी कौनसी रोटी स्वादिष्ट हो जाए , किसकी रोटी जल जाए कोइ नहीं जानता मगर सर्वे से लेकर सट्टा बाज़ार तक अपने अपने चिमटे से जली -पकी-सिंकी रोटियां छांट छांट   निकाल कर पेश करने पर तुला है/ इन रोटियों की गर्म खुश्बू किसी पार्टी की नाक में दम करती नज़र आ रही है तो किसी पार्टी के पेट में चूहे कुदा  रही है/ यही मज़ा है चुनाव का/ हालांकि अभी मतदान में वक्त है/ यही
  वक्त तो होता है जब  सट्टा बाज़ार अपनी दिवाली मनाता  हैं/  आप को हैरत होगा यह जानकार कि जिस तरह से सर्वे के नतीजे पार्टियों को परेशान और खुश कर देते हैं ठीक उसी तरह से सट्टेबाज़ार का रुख भी पार्टियों की साँसों को ऊपर-नीचे करता रहता है/ जबकि इन दोनों का कोइ शत प्रतिशत आधार नहीं होता / किन्तु राजनीतिक पार्टियों को हवा का रुख भांपने में मदद मिल जाती है/ अब तक के सर्वों में कांग्रेस की बुरी गत रही है तो कांग्रेस ने इस तरह के किसी भी पोल- टी वी चॅनल बहस  आदि  में शामिल होने से इंकार कर दिया है / भारतीय जनता पार्टी के कानों में उसका डंका बजता गूँज रहा है / अन्य पार्टियां जिसमें आम आदमी पार्टी भी है बहस इत्यादि में अपनी बातें रखने को लालायित हैं/ पर इन सबसे अलग सट्टेबाज़ार का रुख देख-जानकार भाजपा की पौ बारह मानी जा सकती है/ क्योंकि सट्टाबाजार भाजपा के पक्ष में झुका हुआ दिख रहा है/
'खबर गल्ली ' के पास जो जानकारियां हैं उसमें भाजपा पर शानदार तरीके से  दांव लगाया जा रहा है/ दूसरे  नंबर पर कांग्रेस है/ वैसे तो ये ही दो पार्टियां ही हैं जो देश के राजनीतिक माहौल का केंद्रबिंदु हैं/ सट्टेबाजार के रुख को किसी भी तरह से मान्य नहीं किया जा सकता किन्तु इससे चुनावी नतीजों से पहले तक का आत्मबल कायम रखा जा सकता है/ भाजपा के लिए शायद यह सोने पर सुहागा ही है कि एक ओर सर्वे उसे विजयी बता रहे हैं तो दूसरी और सट्टेबाज़ार में भी उसकी तूती बोल रही है/ बताया  जाता  है कि  कोइ १० से १५ हजार करोड़ का अब तक भाजपा के फेवर में सट्टा लगाया जा चुका है/ आइये अब आपको इस बाज़ार के रुख का दर्शन करा देते हैं/
सट्टेबाज़ार में हासिल की जाने वाली सीटों के आधार पर भाव लगाया जा रहा है/ किसके पास कितनी सीटें होंगी / यानी जिसके पास जितनी अधिक सीटें होंगी उसे उतनी  तयशुदा रकम दी जायेगी / जानकारी  और चर्चा के मुताबिक़ इस वक्त जो खबरें हैं उसमें दिल्ली  की ७० सीटों में अगर २८ सीटें भाजपा के पक्ष में जाती हैं तो बुकीज करीब २४ पैसे अधिक देंगे / इससे कम सीटें रहीं तो समझो आपको अपनी रकम गंवाना होगी / मजा यह है कि अधिकतर सट्टेबाज़ भाजपा पर दांव लगाना चाह रहे है/ ऐसे ही राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसग़ढ़ का हाल है/ बताया जाता है कि दिल्ली को छोड़ कर अन्य राज्यों में भाजपा को अधिक फायदा है / दिल्ली में 'आप ' भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है/  
सट्टेबाजार के जानकारों का मानना है चुनाव के नजदीक आते आते करोड़ों अरबों के वारे न्यारे हो जाया करते हैं/  क्योंकि सिर्फ सीटे ही नहीं बल्कि नेताओं की जीत हार पर भी पैसा लगाया जाता है/ हाल ही में जो टिकिट बंटवारे के बाद हुए घमासानों से माहौल गरम हुआ तो इसका असर सट्टेबाज़ार पर भी पड़ा/ दर असल नेताओं के मूड , उनके विरोध, उनके तेवरों से भी इस बाज़ार के ग्राफ पर अंतर पड़ता है/ जो हो पर सट्टेबाज़ार में इन दिनों राजनीतिक गरमाहट से चांदी ही चांदी है/ 

Wednesday 6 November 2013

सचिन का सच


सचिन तेंदुलकर , क्रिकेट का बेताज बादशाह है/ नो डाउट / सचिन तेंदुलकर बाज़ार का एक जबर्दस्त बिकाऊ आइटम है/ नो डाउट/ अब हालात ऐसे हैं कि इस बादशाह के सहारे जितनी अधिक  कमाई की जा सकती है , करने पर तुले हैं लोग/ न केवल बी सी सी आई बल्कि छोटे -बड़े हर तरह के व्यापारी/ सट्टेबाज/ यहाँ तक की पान बीड़ी दुकान  वाले भी / माहौल कुछ ऐसा बना दिया गया है कि ये माल अब बाज़ार से मानो उठने वाला है इसलिए जितना निचोड़ा जा सके निचोड़ लिया जाए/ खुद सचिन बेचारे बने हुए हैं/ अपनी ख्याति के आलोक में उन्हें यह भी नहीं दिखाई दे रहा कि उनको एक वस्तु के तौर  पर लाकर खड़ा कर दिया गया है/ वैसे वे जानते भी होंगे किन्तु यह भी एक तरह का नशा है / बाज़ार में बिकने का नशा/ सचिन खुद बिक रहे हैं/ यह बिक्री भी अनोखी है/ पूरे देश में सचिन को एक ऐसे खिलाड़ी के रूप में सिद्ध कर दिया गया है जैसे इस देश में सचिन के अलावा दूसरा कोइ खिलाड़ी ही नहीं जिसने देश का नाम रोशन किया हो / क्रिकेट की यही तो महिमा है /  क्रिकेट है क्या ? खेल? नहीं/ खेल जैसे किसी जुए को भी कहते हैं यह भी ठीक वैसा ही है/ मेरी इस बात से क्रिकेट प्रेमियों को धक्का लग सकता है / धक्का उन्हें भी पहुंचेगा जो क्रिकेट के वाहक हैं/ सचिन इस जुए के  एक कीमती प्यादे भर हैं / यह अलग बात है कि उनकी कलात्मकता ने क्रिकेट की परिभाषा रची है/ पर इस रचने के कारण ने ही उन्हें अप्रत्यक्ष तौर  पर वस्तु बना दिया है/ उनके नाम पर अरबों का व्यापार हो रहा है/ सचिन को क्रिकेट का भगवान् बनाये जाने के नेपथ्य में बाज़ार के धुरंधरों का कमाल है/ इस कमाल में खुद सचिन मस्त हैं तो उनके प्रशंसक भी अंधे/ इन सब का मज़ा लूट रहे हैं व्यापारी / अब आप कहेंगे इसमें गलत क्या ? नहीं गलत कुछ भी नहीं है/ सचिन तेंदुलकर हैं ही इतने बड़े क्रिकेटर कि उनको लेकर देशभर में जबरदस्त  उत्साह है/   ये उत्साह सचिन प्रेमियों का है , बिलकुल निरापद/ किन्तु उन प्रेमियों को ठीक उसी प्रकार ठग लिया जाता है जैसे बड़ी बड़ी कम्पनियां  मध्यम वर्ग को विज्ञापन से ठगती हैं या कन्फ्यूज करती हैं/ भारत इसके लिए हमेशा से ही बड़ा बाज़ार रहा है/ यह इसी का कारण है कि आज सचिन भगवान् के रूप में प्रकट कर दिए गए हैं/ एक तो खुद की महिमा, दूसरे बेहतरीन खेल की महिमा , तीसरे महिमामंडित कर दिया जाना किसी भी व्यक्ति को भगवान् का नाम दिला ही देता है/
कोलकाता में टेस्ट चल रहा है/ कोलकाता से बाहर व्यापार/ सचिन नामक प्रोडक्ट धड़ल्ले से बिक रहा है/ अभी वहाँ का यह आलम है किन्तु मुम्बई का इससे भी दमदार / आख़िरी टेस्ट / होम ग्राउंड पर आख़िरी टेस्ट/ यानी इसका मज़ा ऐतिहासिक / अब चूंकि ऐतिहासिक  है तो ऐतिहासिक मार्केट भी है/ आप सिर्फ टिकटों की कालाबाज़ारी पर मत जाइये/ आप सट्टेबाजी पर भी मत जाइये/ आप यह देखिये कौन कौन सी कम्पनियां सचिन का इस्तमाल कर रही हैं/ सचिन कुछ से अनुबंधित हैं / और जिनसे नहीं है वे भी किसी न किसी बहाने सचिन को ब्रांड के तौर  पर दुकान  पर टाँगे हुए है/  आप यह तो जानते हैं कि सचिन आज अरबों की संपत्ति के मालिक हैं / आप अब यह यकीन भी  रख सकते हैं कि इस अरबों की संपत्ति के मालिक के सहारे कितनी ही कम्पनियां खरबों  की मालिक हुई/ ये जो देश भर में सचिन को लेकर अलग रंग घुला हुआ है वह क्या है? यही है असली खेल/ असली क्रिकेट इसी को कहते हैं/ अब आप इस रिकार्ड से भी सचिन के ग्राफ को आगे बढ़ा सकते हैं कि वे इस देश के सबसे महंगे और अरबपति खिलाड़ी भी हैं / इस देश के लोग वैसे भी अमीरों से प्रभावित रहे हैं/ उस पर अगर कोइ किसी विशेष खेल में महारथी हो तो सोने पे सुहागा / ९ अरब ८६ करोड़ रुपयों से अधिक की निजी संपत्ति वाला यह एक ऐसा अमीर है जिसने क्रिकेट से ज्यादा बाज़ार से धन कमाया है/ बाज़ार ने सचिन को महानतम बना दिया /  आज सचिन अगर छींकते भी हैं तो उन्हें उसका पैसा मिल सकता है / इस दिए गए पैसों से कोइ दवा कंपनी अपनी दवा को अंतर्राष्ट्रीय हैसियत दिला सकती है/ तो कोइ रुमाल बनाने वाली सड़ी सी कंपनी खड़ी होकर भौकाल मचा सकती है/ यह करिश्मा है सचिन के नाम का/ यह करिश्मा है सचिन को इस तरह प्रोजेक्ट किये जाने का / जो हो पर सचिन खुद भी एक करिश्मा है/ क्रिकेट  में उनके योगदान को सच में भुलाया नहीं जा सकता / सचिन खिलाड़ी के रूप में यकीनन बादशाह है / और बाज़ार के रूप में बना दिए गए बादशाह भी/ यह भी सचिन का एक  सच  है/ 

Tuesday 5 November 2013

मंगलम

देखिये  हमें इस पर नाज होना चाहिए / सिर्फ इसलिए नहीं कि भारत ने मंगल पर अपना निशाना साधा और यान रवाना किया है बल्कि इसलिए भी किफायत  के मामले  में  भारत ने एक मिसाल पेश की है/ आपको बता दें कि भारत ने  "मिशन मंगल" के तहत जो यान छोड़ा वह 450 करोड़ रूपए का है / जबकि अमेरिकी नासा भी दो हफ्ते  बाद ऐसा ही रॉकेट छोड़नेवाला है/ उसके  मिशन का नाम है "मावेन" (The Mars Atmosphere and
Volatile EvolutioN (MAVEN) उसका बजट है साढ़े चार बिलियन डॉलर/ भारतीय हिसाब से यह लगभग 24 हजार करोड़ रूपए होता है/ अब आप समझ सकते हैं कि हमारे लिए ही नहीं बल्कि विश्व के लिए यह अचरज और कान खड़े करने वाला अभियान है/
ऐन दीवाली के बाद 11 महीने के सफर पर निकाला है यह मंगलयान/ यह यान श्री हरिकोटा से लॉन्च किया गया/ इसरो के 44 साल के लंबे इतिहास में पहली बार पृथ्वी के प्रभावक्षेत्र के बाहर कोई यान भेजा गया है/ एक छोटी सी जानकारी और बता दें कि इस  मंगलयान को पिछले महीने 19 अक्टूबर को छोडे़ जाने की योजना थी, लेकिन दक्षिण प्रशांत महासागर क्षेत्र में मौसम खराब होने के कारण यह काम टाल दिया गया था/
वर्ष 1969 में अपनी स्थापना के बाद से अब तक इसरो ने विभिन्न उद्देश्यों के लिए सिर्फ पृथ्वी के आसपास के अभियान और चंद्रमा के लिए एक अभियान को ही अंजाम दिया है। ऐसा पहली बार है जब राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र से बाहर के किसी खगोलीय पिंड का अध्ययन करने के लिए एक अभियान भेजी है।

भारत के मंगल ऑर्बिटर (यान) की सितंबर 2014 तक लाल गृह की कक्षा में पहुंच जाने की संभावना है। वहां यह जीवन का संकेत देने वाली मिथेन गैस की उपस्थिति की संभावनाएं तलाशेगा। इसरो ने दुनिया भर में स्टेशनों का पूरा नेटवर्क बनाया था।, जो यहां से दोपहर 2 बजकर 38 मिनट पर पहले लॉन्च पैड से मंगल ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) को लॉन्च किए जाने के बाद इसपर नजर रख रहे हैं।

अन्य पीएसएलवी अभियानों से अलग, पीएसएलवी सी 25 मंगल ऑर्बिटर को पृथ्वी की कक्षा में प्रविष्ट करा़ने में 40 मिनट का अतिरिक्त समय लेगा। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि लॉन्च के लिए इसका तटानुगमन (लॉन्ग कास्टिंग फेस) का चरण 1700 सेकेंड का समय लेता है और उपग्रह व पृथ्वी के बीच निकटतम दूरी वाले बिंदु का कोण 276.4 डिग्री रखना होता है। वाहन के मार्ग की निगरानी कई निरीक्षण स्टेशनों से की जा रही है, जिनमें यहां अंतरिक्ष केंद्र के अलावा बेंगलूर के पास ब्यालुलू में इंडियन दीप स्टेशन नेटवर्क, भारत के पोर्ट ब्लेयर में डाउन रेंज स्टेशन शामिल हैं। इसके साथ ही इंडोनेशिया के बियाक और ब्रुनेई से भी इसपर नजर रखी जा रही है।

इसके अलावा शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के एससीआई नालंदा और एससीआई यमुना भी दक्षिणी प्रशांत महासागर में तैनात रहकर इस प्रक्षेपक द्वारा पृथ्वी की कक्षा में मंगल ऑर्बिटर को छोड़े जाने की निगरानी की। इन समुद्री टर्मिनलों पर 4.6 मीटर लंबा एक एंटीना और 1.8 मीटर लंबा एंटीना लगा है। प्रक्षेपक वाहन द्वारा कक्षा में छोड़े जाने पर अंतरिक्ष यान के मार्ग का निरीक्षण अमेरिका (गोल्डस्टोन), स्पेन (मैड्रिड) और ऑस्ट्रेलिया (कैनबरा) स्थित नासा की जेल प्रपल्शन लेबोरेट्री द्वारा किया जाएगा।

मंगल ऑर्बिटर पर लाल ग्रह का अध्ययन करने के लिए पांच वैज्ञानिक उपकरण लगे हैं। इनमें लायमन एल्फा फोटोमीटर, मिथेन सेंसर फॉर मार्स, मार्स एग्जोफेरिक न्यूट्रल कम्पोजिशन एनालाइजर (एमईएनसीए), मार्स कलर कैमरा और थर्मल इन्फ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर शामिल हैं। एल्फा फोटोमीटर और मिथेन सेंसर वायुमंडलीय अध्ययन में मदद करेंगे। एमईएनसीए कणीय पर्यावरण का अध्ययन करेगा। कैमरा और स्पेटक्ट्रोमीटर मंगल की सतह की तस्वीरों का अध्ययन करने में मदद करेंगे।

मंगल पर यंत्रों को भेजने से जुड़े 33 सुझाव मिलने के बाद इसरो ने इनमें से सिर्फ 9 का चयन किया। प्रोफेसर यू आर राव की अध्यक्षता वाली स्पेस विज्ञान की परामर्श समिति ने इनमें से सिर्फ 5 का चयन किया क्योंकि यही पांच यान उड़ान पर जाने के लिए पूरी तरह विकसित थे। 852 किलो ईंधन और 15 किलो के वैज्ञानिक यंत्रों वाले 1,337 किलो के इस मंगल ऑर्बिटर के 14 सितंबर 2014 तक मंगल की कक्षा में पहुंचने की संभावना है। यदि 450 करोड़ की लागत वाला यह मंगल अभियान सफल रहता है तो मंगल पर अभियान भेजने वाली इसरो विश्व की चौथी अंतरिक्ष स्पेस एजेंसी होगी। नासा के अनुसार, हालांकि मंगल के लिए कई देशों द्वारा कुल 51 अभियान भेजे जा चुके हैं लेकिन इनमें से सिर्फ 21 को ही सफल माना गया है।

मंगल ग्रह
मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है, जिस वजह से इसे "लाल ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है। सौरमंडल के ग्रह दो तरह के होते हैं - "स्थलीय ग्रह" जिनमें ज़मीन होती है और "गैसीय ग्रह" जिनमें अधिकतर गैस ही गैस है।
गुरुत्व: 3.711 m/s²
त्रिज्या: 3,390 km
द्रव्यमान: 639E21 kg (0.107 धरती का द्रव्यमान)
सतह का क्षेत्रफल: 144,798,500 km²
दिन की लंबाई: 1 दि 0 घं 40 मि
चंद्रमा: फ़ोबस, डिमोज़

यान के रहस्य यन्त्र  
  • मीथेन सेंसर :  गैस मापने के लिए
  • कम्पोजिट एनालिसिस : जिंदगी के लिए वातावरण की तलाश।
  • फोटोमीटर :  हाइड्रोजन, अन्य वस्तुओं की उपलब्धता का अध्ययन
  • कलर कैमरा : मंगल की धरातल की फोटो भेजेगा
  • इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर : स्थलाकृति की मैपिंग होगी
  • 56 घंटे 30 मिनट का है काउंट डाउन
  • पीएसएलवी सी-25
  • यान का भार : 1350 किलो
  • लंबाई 44.5 मीटर
  • लागत : 110 करोड़
  • 24 सितंबर, 2014 तक मंगल की कक्षा में पहुंचने की उम्मीद
  • धाक : रूस, अमेरिका, जापान और चीन के बाद मंगलयान भेजने वाला भारत पांचवां देश होगा
  • स्थिति : यह सौर मंडल का दूसरा छोटा ग्रह है, जो बुध से बड़ा है। पृथ्वी के व्यास का लगभग आधा है। मंगल पर एक साल पृथ्वी के 687 दिनों के बराबर है।
  • मिशन की लागत :  450 करोड़ रुपये