Tuesday 5 November 2013

मंगलम

देखिये  हमें इस पर नाज होना चाहिए / सिर्फ इसलिए नहीं कि भारत ने मंगल पर अपना निशाना साधा और यान रवाना किया है बल्कि इसलिए भी किफायत  के मामले  में  भारत ने एक मिसाल पेश की है/ आपको बता दें कि भारत ने  "मिशन मंगल" के तहत जो यान छोड़ा वह 450 करोड़ रूपए का है / जबकि अमेरिकी नासा भी दो हफ्ते  बाद ऐसा ही रॉकेट छोड़नेवाला है/ उसके  मिशन का नाम है "मावेन" (The Mars Atmosphere and
Volatile EvolutioN (MAVEN) उसका बजट है साढ़े चार बिलियन डॉलर/ भारतीय हिसाब से यह लगभग 24 हजार करोड़ रूपए होता है/ अब आप समझ सकते हैं कि हमारे लिए ही नहीं बल्कि विश्व के लिए यह अचरज और कान खड़े करने वाला अभियान है/
ऐन दीवाली के बाद 11 महीने के सफर पर निकाला है यह मंगलयान/ यह यान श्री हरिकोटा से लॉन्च किया गया/ इसरो के 44 साल के लंबे इतिहास में पहली बार पृथ्वी के प्रभावक्षेत्र के बाहर कोई यान भेजा गया है/ एक छोटी सी जानकारी और बता दें कि इस  मंगलयान को पिछले महीने 19 अक्टूबर को छोडे़ जाने की योजना थी, लेकिन दक्षिण प्रशांत महासागर क्षेत्र में मौसम खराब होने के कारण यह काम टाल दिया गया था/
वर्ष 1969 में अपनी स्थापना के बाद से अब तक इसरो ने विभिन्न उद्देश्यों के लिए सिर्फ पृथ्वी के आसपास के अभियान और चंद्रमा के लिए एक अभियान को ही अंजाम दिया है। ऐसा पहली बार है जब राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र से बाहर के किसी खगोलीय पिंड का अध्ययन करने के लिए एक अभियान भेजी है।

भारत के मंगल ऑर्बिटर (यान) की सितंबर 2014 तक लाल गृह की कक्षा में पहुंच जाने की संभावना है। वहां यह जीवन का संकेत देने वाली मिथेन गैस की उपस्थिति की संभावनाएं तलाशेगा। इसरो ने दुनिया भर में स्टेशनों का पूरा नेटवर्क बनाया था।, जो यहां से दोपहर 2 बजकर 38 मिनट पर पहले लॉन्च पैड से मंगल ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) को लॉन्च किए जाने के बाद इसपर नजर रख रहे हैं।

अन्य पीएसएलवी अभियानों से अलग, पीएसएलवी सी 25 मंगल ऑर्बिटर को पृथ्वी की कक्षा में प्रविष्ट करा़ने में 40 मिनट का अतिरिक्त समय लेगा। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि लॉन्च के लिए इसका तटानुगमन (लॉन्ग कास्टिंग फेस) का चरण 1700 सेकेंड का समय लेता है और उपग्रह व पृथ्वी के बीच निकटतम दूरी वाले बिंदु का कोण 276.4 डिग्री रखना होता है। वाहन के मार्ग की निगरानी कई निरीक्षण स्टेशनों से की जा रही है, जिनमें यहां अंतरिक्ष केंद्र के अलावा बेंगलूर के पास ब्यालुलू में इंडियन दीप स्टेशन नेटवर्क, भारत के पोर्ट ब्लेयर में डाउन रेंज स्टेशन शामिल हैं। इसके साथ ही इंडोनेशिया के बियाक और ब्रुनेई से भी इसपर नजर रखी जा रही है।

इसके अलावा शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के एससीआई नालंदा और एससीआई यमुना भी दक्षिणी प्रशांत महासागर में तैनात रहकर इस प्रक्षेपक द्वारा पृथ्वी की कक्षा में मंगल ऑर्बिटर को छोड़े जाने की निगरानी की। इन समुद्री टर्मिनलों पर 4.6 मीटर लंबा एक एंटीना और 1.8 मीटर लंबा एंटीना लगा है। प्रक्षेपक वाहन द्वारा कक्षा में छोड़े जाने पर अंतरिक्ष यान के मार्ग का निरीक्षण अमेरिका (गोल्डस्टोन), स्पेन (मैड्रिड) और ऑस्ट्रेलिया (कैनबरा) स्थित नासा की जेल प्रपल्शन लेबोरेट्री द्वारा किया जाएगा।

मंगल ऑर्बिटर पर लाल ग्रह का अध्ययन करने के लिए पांच वैज्ञानिक उपकरण लगे हैं। इनमें लायमन एल्फा फोटोमीटर, मिथेन सेंसर फॉर मार्स, मार्स एग्जोफेरिक न्यूट्रल कम्पोजिशन एनालाइजर (एमईएनसीए), मार्स कलर कैमरा और थर्मल इन्फ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर शामिल हैं। एल्फा फोटोमीटर और मिथेन सेंसर वायुमंडलीय अध्ययन में मदद करेंगे। एमईएनसीए कणीय पर्यावरण का अध्ययन करेगा। कैमरा और स्पेटक्ट्रोमीटर मंगल की सतह की तस्वीरों का अध्ययन करने में मदद करेंगे।

मंगल पर यंत्रों को भेजने से जुड़े 33 सुझाव मिलने के बाद इसरो ने इनमें से सिर्फ 9 का चयन किया। प्रोफेसर यू आर राव की अध्यक्षता वाली स्पेस विज्ञान की परामर्श समिति ने इनमें से सिर्फ 5 का चयन किया क्योंकि यही पांच यान उड़ान पर जाने के लिए पूरी तरह विकसित थे। 852 किलो ईंधन और 15 किलो के वैज्ञानिक यंत्रों वाले 1,337 किलो के इस मंगल ऑर्बिटर के 14 सितंबर 2014 तक मंगल की कक्षा में पहुंचने की संभावना है। यदि 450 करोड़ की लागत वाला यह मंगल अभियान सफल रहता है तो मंगल पर अभियान भेजने वाली इसरो विश्व की चौथी अंतरिक्ष स्पेस एजेंसी होगी। नासा के अनुसार, हालांकि मंगल के लिए कई देशों द्वारा कुल 51 अभियान भेजे जा चुके हैं लेकिन इनमें से सिर्फ 21 को ही सफल माना गया है।

मंगल ग्रह
मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है, जिस वजह से इसे "लाल ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है। सौरमंडल के ग्रह दो तरह के होते हैं - "स्थलीय ग्रह" जिनमें ज़मीन होती है और "गैसीय ग्रह" जिनमें अधिकतर गैस ही गैस है।
गुरुत्व: 3.711 m/s²
त्रिज्या: 3,390 km
द्रव्यमान: 639E21 kg (0.107 धरती का द्रव्यमान)
सतह का क्षेत्रफल: 144,798,500 km²
दिन की लंबाई: 1 दि 0 घं 40 मि
चंद्रमा: फ़ोबस, डिमोज़

यान के रहस्य यन्त्र  
  • मीथेन सेंसर :  गैस मापने के लिए
  • कम्पोजिट एनालिसिस : जिंदगी के लिए वातावरण की तलाश।
  • फोटोमीटर :  हाइड्रोजन, अन्य वस्तुओं की उपलब्धता का अध्ययन
  • कलर कैमरा : मंगल की धरातल की फोटो भेजेगा
  • इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर : स्थलाकृति की मैपिंग होगी
  • 56 घंटे 30 मिनट का है काउंट डाउन
  • पीएसएलवी सी-25
  • यान का भार : 1350 किलो
  • लंबाई 44.5 मीटर
  • लागत : 110 करोड़
  • 24 सितंबर, 2014 तक मंगल की कक्षा में पहुंचने की उम्मीद
  • धाक : रूस, अमेरिका, जापान और चीन के बाद मंगलयान भेजने वाला भारत पांचवां देश होगा
  • स्थिति : यह सौर मंडल का दूसरा छोटा ग्रह है, जो बुध से बड़ा है। पृथ्वी के व्यास का लगभग आधा है। मंगल पर एक साल पृथ्वी के 687 दिनों के बराबर है।
  • मिशन की लागत :  450 करोड़ रुपये

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