Monday 18 November 2013

सचिन लायक नहीं थे इस 'भारत रत्न' के / क्यों ?

भावनाओं  के सागर में हाथ धोने का काम किया है कांग्रेस ने और सचिन के ऊपर इतनी बड़ी जिम्मेदारी थोप दी है जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना भी पड़  सकता है/ सचिन इस वक्त भारत रत्न के हकदार नहीं थे/ हाँ, आज से २० साल बाद उन्हें यह सम्मान दिया जाता तो उचित था/ वे महान तो हैं ही मगर  अभी तो उनकी असली जिंदगी शुरू होनी है जिसमें तय होगा कि वे कितने बड़े महान खिलाड़ी रहे/ सचिन खुद इस षड्यंत्र को भांप नहीं पा रहे हैं, वे खुद अंधे हो चले हैं अपने सम्मान और पुरस्कार की आंधी में/ वे समझ ही नहीं पा रहे हैं कि उनको किस तरह से इस्तमाल कर लिया गया है/  और  किया जाता है/
पहली बात - भारत रत्न माने क्या ? ये एक तरह से लाइफ टाइम अचीवमेंट जैसा है/ यह अपने आप में एक पूरा जीवन है / यह पुरस्कार अन्य पुरस्कार जैसा नहीं , इसमें भारत की शान है , भारत का गर्व है/ महज २४ साल का करियर/ ४० साल की उम्र/ आने वाले वक्त में इस सम्मान की लाज बचाये रखने में सचिन को कितनी मुश्किलों का सामना करना होगा , ये वे नहीं जानते/ और इससे उन्हें कुछ भी लेना देना नहीं जिन्होंने ये सम्मान सचिन को दिलवा दिया/
दूसरी बात - सचिन किसी भी रूप में ध्यानचंद से पूर्व इस सम्मान के  हकदार नहीं थे/ अब इसके बाद अगर ध्यानचंद को भारत रत्न दिया जाता है तो यह ध्यानचंद का अपमान ही कहा जाएगा , जिसने गुलाम भारत के वक्त अपने देश को विश्व में आगे रखा/ जिसने अपने देश के लिए फटेहाल रहना स्वीकार किया न कि हिटलर की सेना में ऐशो आराम से/ जिसने अपने देश की हॉकी को ओलम्पिक स्वर्ण से एक बार नहीं तीन तीन बार संवारा / जिसने अपना सबकुछ न्योच्छावर  करते हुए देश को जीवन सौंप दिया / जिसने  दिल्ली के एम्स   अस्पताल  के सामान्य वार्ड में  दम तोड़ा /
तीसरी बात- क्रिकेट कार्पोरेट जगत का खेल है/ ये जो बोर्ड है यह भी भारतीय सरकार के अधीन नहीं है/ यह एक निजी संस्था है/ ये सिर्फ एक क्लब भर है / अमीर क्लब/ क्लब के हित में खेलते हुए खिलाड़ी पैसा कमाता है / सचिन ने भी खूब कमाया / आप उन्हें अरब पति मान सकते हैं/ हालांकि इस सम्मान में उनकी अमीरी से कोइ लेना देना नहीं है , बल्कि मैं दर्शाना  यह चाह रहा हूँ कि आपने भारत के लिए क्या किया ? सही मायने में देखा जाए तो भारत के लिए सचिन ने कभी नहीं खेला सिवा बी सी सी आई नामक संगठन के/
चौथी बात- आप सचिन के प्रेमी है, प्रशंसक हैं, इसलिए बात जल्दी हजम नहीं होगी / तर्क में आप कहते हैं सचिन बगैर बोले कितना कुछ गरीब जनता-बच्चों के लिए कर रहे हैं/ ठीक है।  बहुत अच्छी बात है/ किन्तु यह बात भारत रत्न के मापदंड में पूरी तरह फिट नहीं बैठती / उसका एक प्वाइंट भर हो सकता है/ क्योंकि भारत में ऐसी लम्बी सूची है जिन्होंने अपना पूरा जीवन बगैर किसी प्रचार के जनता के हित में लगा दिया है , लगा रखा है/
पांचवी बात- क्रिकेट मैच फिक्सिंग को लेकर कई बार कटघरे में खड़ा हुआ है/ हाँ, सचिन जब टीम में थे तब भी उनकी टीम के खिलाड़ियों पर मैच फिक्सिंग की गाज गिरी/ खिलाड़ी प्रतिबंधित हुए/ क्या सचिन को बिलकुल भी पता नहीं चला कि ये सब माज़रा है क्या? ड्रेसिंग रूम में हवा तक नहीं लगी होगी ? सचिन ने अपना मुंह हमेशा बंद रखा है/ चलिए मान लेते हैं सचिन के मुंह पर बोर्ड का ताला  लटका हो, किन्तु अब तो उन्हें इस तरह के मामलात  की  पोल खोलनी चाहिए/ आप भारत रत्न हैं, आपकी नाक के नीचे क्रिकेट मैला  होता रहा और आप बस दर्शकों की तरह देखते रहे, ऐसा कैसे सम्भव है ? अगर सचिन आने वाले कल में कभी इस तरह के किसी भी विवाद में पड़ जाते  हैं तो यह हमारे भारत रत्न का अपमान नहीं होगा ? अभी तो वे महज ४० साल के हैं और ताज़ा ताज़ा रिटायर हुए हैं/
छठी बात - सचिन खुद ये जानते हैं कि उन्हें भारत रत्न का सम्मान देकर सरकार ने खासकर कांग्रेस ने फंसा दिया है/ अगर वाकई वे बड़े महान खिलाड़ी होते और खेलों के प्रति उनके मन में सम्मान होता तो वे बेहिचक कह सकते थे कि ये सम्मान पहले ध्यानचंद को दिया जाना चाहिए/ अभी मैं खुद को इस लायक नहीं मानता/ जबकि ऐसा नहीं हुआ, क्यों? क्योंकि क्रिकेट के रिकार्ड्स की तरह ही उनके मन में भारत रत्न का लालच था / आप कैसे कह सकते हैं कि जितने  शतक आपने बनाये वो बस अपनी टीम को जितवाने के लिए बनें? इसमें आपकी कोइ लालची भावना नहीं थी ? कोइ भी खिलाड़ी हो, पहले खुद के लिए खेलता है/ बाद में सारे क्रियाकर्म आते हैं/
सातवीं बात- अभी भी सचिन प्रेम में अंधे बने लोगों को सच्ची बात गले उतारने में कठिनाई आएंगी , जो भारत रत्न की अहमीयत नहीं जानते/ उनसे मेरी विनती है कि वे इस आलेख को न पढ़ें या पढ़ भी लें तो मेरी आलोचना शुरू कर दें/ किन्तु देश के इस महान पुरस्कार की जो दशा आज मुझे दिखाई  दे रही है वह मुझे पीड़ा पहुंचा रही है/ क्योंकि इसमें सिर्फ और सिर्फ कांग्रेसी  कूटनीति की बदबू है/ सचिन को कैसे पच जा रहा है यह सब, वे जानें / कितना पचा लेने की क्षमता उनमें है ये उनकी अपनी ताकत/ महानता इसे नहीं कहते सचिन/ जबकि सचिन महान है/ यह कितना बड़ा विरोधाभास दिखने लगा है/ 

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