Tuesday 10 December 2013

कांग्रेस की उखड़ती साँसे

कांग्रेस क्या अपने पतन पर खड़ी है? चार राज्यों के चुनाव परिणामों और देश में बन रही उसकी छवि इस सवाल को गम्भीरता से प्रकट करती है / अगर एक नजर में इस सवाल के उत्तर में हम हां को जगह देकर देखें तो इसके कई कारण भी दृष्टिगोचर होने लगते हैं/ यह कारण कोई बचकाने नहीं है जिनसे बचा जाए बल्कि इतने ठोस हैं कि कांग्रेस को न केवल पुनरमंथन करना होगा बल्कि अपनी पार्टी में सफाई भी करनी होगी/
इंदिरा -राजीव काल के बाद सोनिया गांधी का सफ़र कुछ हद तक संतोषजनक रहा  किन्तु अब राहुल काल में सोनिया की छवि को यदि धक्का पहुंचा है तो इसका मूल कारण ये दोनों आला नेता ही हैं जिन्होंने चाटुकारिता को प्रमुखता दी और सलाहकारों को खुल्ला छोड़ दिया/ गांधी परिवार की यह विशेषता रही है कि उसने अपने आगे किसी नेता को खड़ा नहीं होने दिया / अभी भी इस परम्परा को उन्होंने बनाये रखा है किन्तु उनके नेताओं द्वारा उनको बेवकूफ बनाये रखने की 'चाल' को समझ पाना गांधी परिवार के बस में नहीं रह गया/ परिणाम सामने है कि कांग्रेस की हार का ठीकरा गांधी परिवार पर फूटता है और गांधी परिवार की छवि जनता के सामने कौड़ी भर की होने लगी है/ ये जो कांग्रेसी नेताओ का समर्पण है , ये दिल से नहीं दिमाग से है / उन्हें पता है कि उनकी रोजी रोटी सोनिया -राहुल से जुडी है / वे यह भी जानते हैं कि दोनों को किस तरह अँधेरे में रखा जा सकता है और कब तक रखा जा सकता है / ताकि उनकी झोली इतनी भर जाए कि भविष्य की चिंता न रहे/ यानी गांधी परिवार की भक्ति में लीन रहते हुए बेवकूफ बनाया जाता रहे/ दिग्विजय सिंह हों या कपिल सिब्बल, या फिर चिदंबरम, राजिव शुक्ला जैसे नेता हों, इन नेताओं ने कांग्रेस को अपनी गिरफ्त में इतना ले रखा है कि सोनिया-राहुल इनके इतर कुछ सोच ही नहीं पाते / शीला दीक्षित की हार और उसके बाद उनका एक कमेंट कि 'नेताओं की वजह से पराजय ' इस बात को पुख्ता करता है/ फिर भी स्थिति इतनी दृढ़ है कि सोनिया अगर अपनी पार्टी में सफाई भी करना चाहे तो नहीं कर सकती /
राहुल गांधी पूरी तरह से अपरिपक्व नेता हैं और यही वजह है कि उन्हें सिर्फ चाटुकारिता में घिरे रह कर ही काम करना है/ वे कितना भी खुद को प्रोजेक्ट करने की कोशिश करें, या  खुद में साहस, या आत्मविश्वास को दर्शाये किन्तु वे अपने इस घेरे को चाहते हुए भी नहीं तोड़ सकते/ कांग्रेस के खिलाफ बने वातावरण को आखिर कब तक धन बल , बाहुबल से सामान्य बनाये रखा जा सकता है ? मंहगाई है , गरीबी है, घोटाले हैं , यौनाचार के मामले हैं इन पर पर्दा डालना फिलवक्त सम्भव नहीं/ और ऊपर से कांग्रेस का कोइ नेता खुद को झुकाने को तैयार नहीं है जिससे जनता को उनके प्रति हमदर्दी हो सके/  उनके दम्भ और उनके अतिआत्मविश्वास को जनता समझने लगी है/ वो उनके घड़ियाली आंसुओं से भी परिचित हो चुकी है जो कांग्रेसी आये दिन बहाते नज़र आते हैं/ सबसे बड़ी एक वजह यह भी है कि कांग्रेस का प्रधानमंत्री लोकप्रिय नेता के रूप में खुद को अब तक खड़ा नहीं कर पाया है/ आप देखिये मनमोहन सिंह प्रचार के दौरान कितने निरीह जान पड़ते हैं/ ये लोग समझते हैं कि उनकी ज्यादातर अनुपस्थिति का कारण क्या है? उनमें वो ऊर्जा दिखाई ही नहीं देती जो आज की जरुरत है/ और लगभग सारे कांग्रेसी अभी भी इस समीकरण पर विश्वस्त हैं कि भारतीय जनता पार्टी आंकड़ों के लिहाज से सरकार नहीं बना पायेगी / न बना सके/ किन्तु इसमें कांग्रेस खुद को कितना मजबूत बना रही है, यह प्रश्न तो होगा ही/ मान लीजिये ले-दे कर गठबंधन की सरकार फिर बन जाए / मगर देश की जनता में कांग्रेस के लिए प्रेम तो नहीं ही उमड़ सकता/ यह सरकार विडम्बना के रूप में देश के सामने होगी , क्योंकि भाजपा की तुलना में कांग्रेस की लोकप्रियता कमतर ही रहने वाली होगी/
कांग्रेस यानी सोनिया गांधी / यह जो फार्मूला है उसे खुद सोनिया को तोड़ना होगा , सोनिया को अपने नेताओं को सिखाना होगा कि वे व्यक्ति पूजक न बने रहें बल्कि देश की जनता के पूजक हों/ किन्तु यह भी  उनकी फितरत से बाहर की बात है/ लिहाजा कांग्रेस के पतन की सुनिश्चितता इसी बात में निहित है/ तो देखना दिलचस्प होगा इस बड़ी पार्टी के भविष्य को / 

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