Friday 13 December 2013

अन्ना का अनशन रिटायर होती कांग्रेस को पेंशन

अगर आपको कहें कि अन्ना का अनशन रिटायर होती कांग्रेस को पेंशन और लोकपाल की आड़ में झोलझाल करना है तो कैसा लगेगा? अच्छा नहीं लगेगा न / मगर इस अनशन से उभरी तस्वीर संदेह को मजबूत भी तो करती है कि अन्ना का अनशन अब लोकहित में कम कांग्रेस हित में ज्यादा दिखता है /
पिछले दिनों अन्ना के  मंच से कांग्रेस द्वारा  पेश किये गए बिल के समर्थन में जो बात कही गयी वो संदेह को पुख्ता करने के लिए पर्याप्त है कि अन्ना को यह क्या हो गया ? अन्ना के अचानक कांग्रेसी करण को देखकर भौंचक रह जाने के आलावा दूसरा कुछ दिखता क्यों नहीं ? संसद में रखे गए लोकपाल और अन्ना के जनलोकपाल में काफी अंतर होने के बावजूद उसे स्वीकार कर लेने की मंशा क्या कांग्रेस को जीवनदान देने जैसा नहीं है? कांग्रेस द्वारा पेश किये जाने वाले बिल में अन्ना के जनलोकपाल बिल के कई मुद्दे नहीं है/ सरकारी बिल के अनुसार न तो सीबीआई को लोकपाल के दायरे में लाया जा रहा है, न सिटिजन चार्टर लागू किया जा रहा है और ना लोअर ब्यूरोक्रेसी को लोकपाल की जांच के दायरे में रखा जा रहा है/ जबकि इन मांगों को लेकर ही अन्ना बनाम सरकार जैसी स्थितियां निर्मित हुई थी/ 'आप' को सरकारी लोकपाल मंजूर नहीं है/ जबकि अन्ना सरकारी लोकपाल के पक्ष में खड़े होते दिखने लगे हैं/ यदि ऐसा ही था तो अन्ना द्वारा देश की जनता को इतने दिनों तक आंदोलन की आग में झौंकने  का क्या औचित्य था? क्या अन्ना इस तरह देश की जनता के साथ धोखा नहीं कर रहे? या फिर वे कांग्रेस के समर्थन में उतर आये हैं?
अब आप अन्ना और अरविन्द केजरीवाल की राजनीति को समझिये/ दोनों ने एकसाथ मिलकर आंदोलन शुरू किया था/ कांग्रेस के खिलाफ आग उगली थी/ बाद के दिनों में अरविन्द केजरीवाल ने अपनी आम आदमी पार्टी ' बना ली और अन्ना से दूरी भी/ किन्तु यह दूरी दिखावे की दूरी ज्यादा प्रतीत हुई/ आपसी मतभेद के बावजूद दोनों ही कांग्रेस के प्रति झुके  हुए  नजर आते हैं/ दिल्ली की  सत्ता के लिए 'आप' और कांग्रेस के बीच के समीकरण छुपाय  नहीं छुपते  / अन्ना द्वारा सरकारी लोकपाल के समर्थन में खड़े हो जाना कांग्रेस की डूबती नैया को पार करा देने जैसा है/ कांग्रेस को यही सब तो चाहिए / आज उसकी हालत जिस तरह से गिरती जा रही है उसे अन्ना और 'आप' के सपोर्ट की बहुत आवश्यकता है, भले ही छुपे तौर पर/ और यह उसे मिलता भी नज़र आता है/
अब आप अन्ना की कही गयी बातों को देखें और खुद समझने का प्रयास करें - ‘कोई बात नहीं... सोमवार को उस पर बहस होने दो। एक दिन लोकसभा के लिए रख लो। मुझे पूरा भरोसा है कि इस बार बिल पास हो जाएगा।’ यानी अन्ना इसी सरकारी बिल पर मानने को तैयार हैं/ उनकी करीबी किरण बेदी ने तो खुले तौर पर इस बिल को ‘अन्ना का जनलोकपाल’ बता दिया है/ क्या देश की आँखों में धूल नहीं झौंकी जा रही ? जनता जो इस आंदोलन में अपना सबकुछ न्योच्छावर कर कूदी थी क्या सरकारी बिल को पाकर वो संतुष्ट  होगी ? अन्ना और अरविन्द ने अपने अपने हित तो साध लिए , और आज भी जनता के कन्धों पर बन्दूक रख कर साध रहे हैं किन्तु जनता को क्या मिल रहा है ? सोचिये /

No comments:

Post a Comment